Ad Code

Responsive Advertisement

Ticker

6/recent/ticker-posts

Ticker

क्या आप जानते हैं पृथ्वी के बारे मे इन बातों को ?

नमस्कार दोस्तों



पृथ्वी कैसे बनी ? इस सवाल का जवाब जानने के बारे में सब के
मन में एक उत्सुकता सी रहती है। धार्मिक तौर पर देखा जाए तो कहा जाता है, धरती भगवान् ने बनाया और फिर उस पर पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं और मनुष्यों को बनाया। परन्तु विज्ञान इस बात को नहीं मानता। और हम स्कूल में किताबों में भी यही पढ़ते हैं कि, धरती सूरज से निकला हुआ एक आग का गोला था। फिर ठंडी हो गयी और फिर जीवन की उत्पत्ति हुयी।
क्या कभी सोचा है कि वो आग का गोला ठंडा क्यूँ हुआ होगा? कभी सोचा है कि आग में पानी कहाँ से आ गया? कभी सोचा है चाँद कैसे बना? ऐसे ही सवालों का जवाब आज हम आपको देने वाले हैं।

पृथ्वी कैसे बनी आग का गोला?




आज से लगभग 5 बिलियन साल पहले अन्तरिक्ष में कई गैसों के मिश्रण से एक बहुत ही जोरदार धमाका हुआ। इस धमाके से एक बहुत ही बड़ा आग का गोला बना जिसे हम सूर्य के नाम से जानते हैं। इस धमाके के कारन इसके चारों और धूल के कण फ़ैल गए। गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारन ये धूल के कण छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों में बदल गए। धीरे-धीरे ये टुकड़े भी गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारन आपस में टकराकर एक दूसरे के साथ जुड़ने लगे।  इस तरह हमारे सौर मंडल का जन्म हुआ।
कई मिलियन साल तक गुरुत्वाकर्षण शक्ति ऐसे पत्थरों और चट्टानों को धरती बनाने के लिए जोड़ती रही। उस समय 100 से ऊपर ग्रह सौर मंडल में सूर्य का चक्कर लगा रहे थे। चट्टानों के आपस में टकराने के कारण धरती एक आग के गोले के रूप में तैयार हो रही थी जिसके फलस्वरूप लगभग 4.54 बिलियन साल पहले धरती का तापमान लगभग 1200 डिग्री सेलसियस था।
अगर धरती पर कुछ था तो उबलती हुयी चट्टानें, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और जल वाष्प। एक ऐसा माहौल था जिसमे हम चंद पलों में दम घुटने से मर जाते। उस समय कोई भी सख्त सतह नहीं थी कुछ था तो बस ना ख़त्म होने वाला उबलता लावा।

चाँद कैसे बना?



उसी समय एक नया ग्रह जिसका नाम थिया (Theia)। धरती की तरफ बढ़ रहा था। इसका आकार मंगल ग्रह जितना था। इसकी गति 50की.मी./ सेकंड थी। जोकि बन्दूक से चली हुयी गोली से बीस गुना ज्यादा है। जब यह धरती की सतह से टकराया तो एक बहुत बड़ा धमाका हुआ जिससे कई ट्रिलियन कचड़ा ( Debris ) धरती से बहार निकल गया और वह ग्रह धरती में विलीन हो गया।
कई हजार साल तक गुरुत्वाकर्षण अपना काम करती रही और धरती से निकले हुए कण कई हजार साल तक इकठ्ठा कर धरती के इर्द-गिर्द एक चक्कर बना दिया। इस चक्कर से एक गेंद बनी जिसे हम चाँद कहते हैं। ये चाँद उस समय 22000की.मी. दूर था जबकि आज ये 400000की.मी. दूर है। दिन जल्दी बीत रहे थे लेकिन धरती में बदलाव धीरे-धीरे आ रहे थे।


कहाँ से आया नमक और पानी?


3.9 बिलियन साल पहले अन्तरिक्ष में बचे चट्टानों का धरती पर हमला होना लगा। आसमान से गिरते इन उल्का में एक अजीब से क्रिस्टल थे। जिन्हें आज नमक के रूप में प्रयोग किया जाता है। हैरानी की बात ये है कि जिन महासागरों से हम नमक निकालते  समुद्र का पानी इन्हीं गिरने वाले उल्का के अन्दर मौजूद नमक से निकला है। आप के मन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर उल्का में मौजूद इतने कम पानी से सागर कि उत्पत्ति कैसे हो सकती है? तो इसका जवाब है कि ये उल्का धरती पर 20 मिलियन साल तक गिरते रहे जिस कारण धरती पर काफी पानी इकठ्ठा हो गया।

कैसे बनी कठोर सतह?


धरती पर पानी इकठ्ठा होने के कारण धरती की ऊपरी सतह ठंडी होने लगी और उबलती चट्टानें ठंडी होने के कारन सख्त होने लगीं। लेकिन धरती के अन्दर लावा उसी रूप में मौजूद रहा। धरती का ऊपरी तापमान 70-80डिग्री सेल्सियस हो चुका था। धरती की सतह भी सख्त हो चुकी थी। धरती के वातावरण में बदलाव लाने के लिए ये तापमान और हालात एक दम सही थे।
धरती पर आज जो पानी है वह कई बिलियन साल पहले का है। इसी पानी के नीचे सारी सख्त सतह ढक चुकी थी। चाँद के पास होने के कारन उसके द्वारा लगने वाले गुरुत्वाकर्षण से धरती पर एक तूफ़ान सा आने लगा। उस तूफ़ान ने धरती पर उथल-पुथल मचा दी थी। समय के साथ चाँद धरती से दूर होता गया और तूफान शांत हो गया। पानी कि लहरें भी शांत हो गयीं। अब धरती की छाती से लावा फिर निकलने लगे और छोटे-छोटे द्वीप बनने लगे।

कैसे शुरू हुआ जीवन?



3.8 बिलियन साल पहले धरती पर पानी भी पहुँच चुका था और ज्वालामुखी फूट-फूट कर छोटे-छोटे द्वीप बना रहे थे। उल्काओं की बारिश अभी भी रुकी नहीं थी। पानी और नमक के इलावा ये उल्का और भी कुछ ला रहे थे। कुछ ऐसे खनिज पदार्थ जो जीवन कि उत्पत्ति करने वाले थे। ये खनिज पदार्थ थे कार्बन और एमिनो एसिड। ये दोनों तत्व पृथ्वी पर पाए जाने वाले हर जीव जंतु और पौधों में पाए जाते हैं।
ये उल्का पानी में 3000 मीटर नीचे चले जाते थे। जहाँ सूर्य की किरणें पहुँच नहीं पाती थीं। धीरे धीरे ये उल्कापिंड ठन्डे होकर जमने लगे। इन्होंने एक चिमनी का आकर लेना शुरू कर दिया और ज्वालामुखी में पड़ी दरारों में पानी जाने से धुआं इन चिमनियों से निकलने लगा और पानी एक केमिकल सूप बन गया। इसी बीच पानी में समाहित केमिकलों के बीच ऐसा रिएक्शन हुआ जिससे माइक्रोस्कोपिक जीवन का प्रारंभ हुआ। पानी में सिंगल सेल बैक्टीरिया उत्पन्न हो चुके थे।

बिना पौधों के कहाँ से आई ऑक्सीजन?



इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें 3.5 बिलियन साल पहले जाना पड़ेगा। ये वो समय था जब समुद्र कि निचली सतह पर चट्टानों जैसे पड़े पत्ते उग रहे थे। इन्होने एक कॉलोनी बना ली थी और इन पर जीवित बैक्टीरिया थे। इन पत्तों को स्ट्रोमेटोलाइट ( Stromatolite ) कहा जाता है। ये बैक्टीरिया सूर्य की रौशनी से अपना भोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण ( Photosynthesis ) कहते हैं।
जिसमे यह सूर्य की किरणों कि ताकत से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोस में बदल देता है। जिसे शुगर भी कहा जाता है। इसके साथ ही ये एक सहउत्पाद (Byproduct ) छोड़ता है जोकि ऑक्सीजन गैस होती है। समय कि गति के साथ सारा सागर ऑक्सीजन गैस से भर गया। ऑक्सीजन के कारण पानी में मौजूद लोहे को जंग लगी जिससे लोहे के अस्तित्व का पता चला। लहरों के ऊपर ऑक्सीजन वायुमंडल में प्रवेश कर चुकी थी। यही वो गैस है जिसके बिना धरती पर जीवन असंभव है।


किस कारण हुआ भूमि पर जीवन संभव

बर्फ पिघलते समय सूर्य से आने वाली पराबैंगनी हानिकारक किरणों से एक केमिकल रिएक्शन हुआ जिससे पानी में से हाइड्रोजन परऑक्साइड बनी और उसके टूटने से ऑक्सीजन। यही ऑक्सीजन गैस 50की.मी. ऊपर वातावरण में पहुंची तो वह भी एक केमिकल रिएक्शन हुआ जिसे से जन्म हुआ जिससे ओजोन नाम की एक गैस बनी जो सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को रोकने लगी। जिसने इवान कि शुरुआत को एक आधार दिया। अगले 150मिलियन साल तक इस गैस की परत काफी मोटी हो गयी। इसके साथ ही पेड़-पौधे अस्तित्व में आये और ऑक्सीजन की मात्रा और बढ़ने लगी।

इतना सब होने के बाद सब ठीक हुआ.. 


एसिड रेन का असर ख़त्म हो रहा था। सागर का पानी भी नीला हो चला था और धरती नीला ग्रह ( Blue Planet ) बन गयी थी। पेड़ पौधे फिर वापस उगने लगे थे। अब वक़्त था डायनासोर का। इनके बढ़ने के साथ ही ज्वालामुखी फटने के कारन नए-नए द्वीपों का निर्माण हो रहा था उर प्लेटों की गतिविधि से सुपरकॉन्टिनेंट टूट कर कई महाद्वीपों में बंट रहा था।

65 मिलियन साल पहले एक बड़े पहाड़ माउंट एवरेस्ट से बड़ा क्षुद्रग्रह ( Asteroid ) 70000 की.मी. कि गति से धरती कि तरफ आ रहा था। उसका केंद्र मेक्सिको था। इसके गिरने से कई मिलियन न्यूक्लियर बम जितनी ताकत पैदा होती है। इसके गिरने के बाद धरती पर सब कुछ तबाह हो गया और वायुमंडल में धूल का घना कोहरा छा गया। भूमि का तापमान 275डिग्री सेल्सियस हो गया। सारे पेड़-पौधे और जीव जंतुओं का अंत हो गया।
एक बार फिर से धरती के वातावरण में बदलाव आया और सब कुछ सामान्य होने पर शुरुआत हुयी स्तनधारी जीवों की। जो आज तक चल रही है। होमोसेपियंस, इन्सान की वो जाती जिसमे हम सब आते है। इनका विकास 40000साल पहले हुआ था। इसके बाद वो दुनिया बनी जो आप आज देखते हैं।

                                                                💗धन्यवाद💗

Post a Comment

0 Comments