नमस्कार दोस्तों
भारत मे कई सारे त्यौहार मनाए जाते है और हर त्यौहार की एक महान एतिहासिक पृष्ठभूमि होती है। इन्हीं त्यौहारो मे एक त्यौहार है नवरात्रि का त्यौहार। यह मुख्यत: हिन्दू त्यौहार है जो देवी शक्ति दुर्गा और उनके नौ रूपो को समर्पित है। नवरात्रि जिसका अर्थ होता है ‘नौ राते’, इस त्यौहार के दौरान देवी शक्ति के नौ रूपो की पूजा की जाती है।
नवरात्रि के नौ रातों में तीन - देवियों महालक्ष्मी,महासरस्वती और नवदुर्गा कहते हैं।
दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें हिन्दू कैलंडर के अनुसार नवरात्रि को वर्ष मे दो बार मनाया जाता है। इस त्यौहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं हालांकि, शक्ति की उपासना का पर्व “शारदीय नवरात्र” शरद ऋतु के आसपास और दशहरे से पहले बड़ी धूमधाम से मनाया मनाया जाता है।
क्यो मनाई जाती है नवरात्रि
अन्य पर्व की तरह इस पर्व की भी एतिहासिक पृष्ठभूमि है। इस पर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध किया था। महिषासुर को देवताओ से अजय होने का वरदान प्राप्त हुआ और उसने अपनी शक्ति का गलत उपयोग करना शुरू कर दिया। महिषासुर ने सभी देवताओ को तंग किया। अपनी शक्ति से उसने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया जिससे देवता भयभीत हो गए।
महिषासुर ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया तथा सभी देवताओ को स्वर्ग से दूर पृथ्वी पर जाना पड़ा। महिषासुर के इस कृत्य से सभी देवता गुस्से मे आ गए और फिर सभी देवताओ ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र शस्त्र देवी दुर्गा को दिए देवी दुर्गा ओर शक्तिशाली हो गईं। नौ दिन देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध हुआ और अंत मे देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया।
नवरात्रि के संबंध मे एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जो नवरात्रि के दशहरे से संबंध को भी बताती है।
रावण के विरुद्ध युद्ध मे श्रीराम जी ने ब्रह्माजी के कहने से चंडी देवी को प्रसन्न करने के लिए हवन की व्यवस्था की जिसके लिए दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल का प्रबंध किया गया। अमरता की चाह मे रावण ने भी चंडी पूजा प्रारम्भ की। रावण ने मायावी शक्ति से एक नीलकमल श्रीराम द्वारा आयोजित किए गए चंडी पूजन की हवन सामग्री से गायब कर दिया। जिससे श्रीराम के संकल्प टूटने और देवी के रुष्ट होने का भय था। तब भगवान राम को स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन‘ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूरा करने के लिए एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने गए, तब देवी प्रकट हो गयी और श्रीराम से प्रसन्न हुई और उन्हे विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप लेकर हनुमानजी सेवा में लग गए। हनुमानजी की निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मण खूश हो गए और उनसे वरदान माँगने को कहा।
इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया।
सबसे पहले श्रीरामजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा की शुरुआत की थी। तत्पश्चात श्रीराम जी ने दसवे दिन लंका को जीतने के लिए निकले और रावण को मारकर लंका पर विजय प्राप्त की। तब से अधर्म पर सत्य और धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा।
नवरात्रि में होती है इन नौ देवियों की पूजा
श्री शैलपुत्री- इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
श्री ब्रह्मचारिणी- इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
श्री चंद्रघरा- इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
श्री कूष्माडा- इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
श्री स्कंदमाता- इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
श्री कात्यायनी- इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
श्री कालरात्रि- इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
श्री महागौरी- इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
श्री सिद्धिदात्री- इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
श्री ब्रह्मचारिणी- इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
श्री चंद्रघरा- इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
श्री कूष्माडा- इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
श्री स्कंदमाता- इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
श्री कात्यायनी- इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
श्री कालरात्रि- इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
श्री महागौरी- इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
श्री सिद्धिदात्री- इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा।
आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
इस पर्व से जुड़ी कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए।
महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा। तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की।
ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।
💗धन्यवाद💗
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